जनक महाराज का नरकवासियों के प्रति करुणामय भाव

पदम पुराण के पाताल खण्ड में इस घटना का वर्णन अाता है। जब जनक महाराज ने अपने शरीर को त्याग दिया तो एक दिव्य सुसज्जित विमान उन्हें लेने अाता है। रास्ते में विमान नरक के अास–पास से गुजरता है अौर तबउनके शरीर के स्पर्श हुयी वायु का स्पर्श नरकवासियों को होता है जिससे उनके दु:ख अप्रकट हो जाते हैं अौर उन्हें असीम अानंद की अनुभूति होती है।

तब वे नरकवासी जनक महाराज से वहीं रुकने की प्रार्थना करने लगे। तब जनक महाराज सोचने लगे कि यदि मेरे शरीर से स्पर्श हुयी वायु इन्हें कुछ सुख प्रदान कर सकती है तो मैं नरक में ही रहना पसंद करुँगा। फिर तो यहनरक ही मेरे लिए स्वर्ग है।

एेसा सोचकर राजा वहीं नरक के द्वार पर रुक गए। कुछ समय पश्चात् जब यमराज स्वयं वहाँ पहुँचे। यमराज ने मुस्कुराकर पूछा, हे राजा अाप तो सर्व धर्म शिरोमणि हो। अाप यहाँ नरक में क्या कर रहे हो? यह स्थान तो उनदुष्ट पापियों के लिए है जो दूसरों को हानि पहुँचाते हैं। अापके जैसे महापुरुष का यहाँ क्या काम? यहाँ तो उन्हें ही लाया जाता है जो दूसरों के धोखा देते हैं, दूसरों की निन्दा करते हैं, दूसरों की सम्पत्ति को हड़प लेते हैं, अपनीपुण्यवान धार्मिक पत्नी को त्याग देते हैं।

जो लोग कभी भी अपने मन, शरीर या वाणी में भगवान् श्रीराम का चिन्तन नहीं करते उन्हें मैं नरक में फेंक देता हूँ। अौर जो लोग लक्ष्मीपति नारायण की चिन्तन करते हैं वे नरक के दु:खों से छुटकारा पाकर शीघ्र ही वैकुण्ठ कीअोर गमन करते हैं।

हे बुद्धिमान राजा, मेरे सेवक अाप जैसे पुण्यवान व्यक्ति की अोर तो देख भी नहीं सकते वे तो केवल पापियों को यहाँ लाते हैं। इसलिए अाप स्थान को छोड़कर अपने विमान में विराजमान होकर अनेक सुखों का अानंद लीजिए।

यमराज के शब्दों को सुनकर जनक महाराज ने अत्यधिक करुणामय भाव में उत्तर दिया,

यद्यपि मैं नरक में हूँ किन्तु मेरे यहाँ रहने से इन्हें सुख मिल रहा है, इसलिए मैं यहीं रहूँगा। यदि अाप इन नरकवासियों को छोड़ने के लिए तैयार हैं तो मैं वैकुण्ठ की अोर गमन करूँगा।

कृपया मुझे बताईये कि कैसे इन नरकवासियों को इन दु:खों से छुटकारा दिलाया जा सकता है।

तब यमराजजी ने कहा कि इन्होंने कभी भगवान् विष्णु की अाराधना नहीं की है, इन्होंने कभी भी भगवान् के नाम, रूप लीला एवं गुण इत्यादि का श्रवण, कीर्तन एवं स्मरण नहीं किया है। ये कैसे नरक से मुक्त हो सकते हैं?

यदि अाप इन्हें मुक्त करना चाहते हैं तो अापको अपने कुछ धार्मिक लाभ इन्हें देने होंगे, एक दिन सुबह उठकर जब अापने अपने शुद्ध हृदय से भगवान् राम पर ध्यान करते हुए राम–राम का उच्चारण किया था, उससे अापको जोधार्मिक लाभ प्राप्त हुअा था वह अाप इन्हें दे दें। उससे इन्हें नरक से मुक्ति प्राप्त हो जायेगी क्योंकि भगवान् राम महापाप हराभिध: – घोर से घोर पापों को हरने वाले हैं।

एेसा सुनकर जनक महाराज ने शीघ्र ही वैसा किया अौर तुरन्त ही वे सभी नरकवासी अपने दु:खों से मुक्त हो गए अौर उन्होंने अपने–अपने दिव्य शरीर को प्राप्तकर वैकुण्ठ की अोर गमन किया।

यह है वैष्णव की करुणा अौर हरिनाम की शक्ति का प्रभाव। हमारे जीवन का सबसे भाग्यशाली क्षण वही है जब हम किसी वैष्णव के सम्पर्क में अाकर हरिनाम को स्वीकार करते हैं। क्योंकि वैष्णव अौर हरिनाम की कृपा से हीहम इस भौतिक जगत् के दु:खमय चक्र से मुक्त हो सकते हैं। हरे कृष्ण।

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